इतिहास लिख रहा है, वही फिर नया ज़माना
मेरे सब्र की कहानी, तेरे ज़ुल्म का फ़साना
कभी फिर न सर उठाए, इसे वो सबक़ सिखाना
जो दगा दे दोस्ती में, उसे क्या गले लगाना
ये हवा का रूख़ अनोखा, जो सभी ने आज देखा
है इधर से दोस्ताना, है उधर से कातिलाना
कहीं जंग से किसी का, कभी कुछ भला हुआ है
कि लहू तो फिर लहू है, इसे यूँ न तुम बहाना
जो वतन पे मिट रहे हैं, कोई जा के उन से कह दे
ये पयाम शायराना, ये सलाम शायरना
Aapka-
Ashok Mizaj