Wednesday, July 21, 2010

Kargil shaheedon ke naam 26 july- Kargil Shaheed Divas

यह ग़ज़ल मैने उस वक़्त कही थी जब हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता चल रही थी कि अचानक कारगिल पर एक अघोषित युद्ध शुरू हो गया था वही ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है


इतिहास लिख रहा है, वही फिर नया ज़माना
मेरे सब्र की कहानी, तेरे ज़ुल्म का फ़साना

कभी फिर न सर उठाए, इसे वो सबक़ सिखाना
जो दगा दे दोस्ती में, उसे क्या गले लगाना

ये हवा का रूख़ अनोखा, जो सभी ने आज देखा
है इधर से दोस्ताना, है उधर से कातिलाना

कहीं जंग से किसी का, कभी कुछ भला हुआ है
कि लहू तो फिर लहू है, इसे यूँ न तुम बहाना

जो वतन पे मिट रहे हैं, कोई जा के उन से कह दे
ये पयाम शायराना, ये सलाम शायरना

Aapka-
              Ashok Mizaj