Tuesday, September 13, 2011

hindi diwas ki shubhkaamnayen

न मैं हिंदी का न उर्दू का हवाला लिक्खूं,,,
माँ तो बस माँ है बताओ मैं उसे क्या लिक्खूं???
- अशोक मिज़ाज
हिंदी की अपनी शान है उर्दू की अपनी शान
दोनों ही आन बान हैं हिन्दोस्तान की...
- अशोक मिज़ाज

Sunday, August 21, 2011

anna hazare ke liye meri ek ghazal

मत डरो बिंदास चल दो
ज़िद करो दुनिया बदल दो

जल रहे हैं जो अज़ल से
उन सवालों के भी हल दो

कोशिशें करके तो देखो
एक मरहम और मल दो

ये कमल कीचड़ में खुश हैं
लाख तुम पानी बदल दो

मुश्किलें जो सर उठायें
उनको पैरों से कुचल दो

नफरतों की इस सदी को
प्यार की कोई ग़ज़ल दो

पत्थर भी आयेंगे


रिश्ते जताने लोग मेरे घर भी आयेंगे
फल आये हैं तो पेड़ पे पत्थर भी आयेंगे

जब चल पड़े हो सफ़र को तो फिर हौसला रखो
सहरा कहीं, कहीं पे समंदर भी आयेंगे

कितना गुरुर था उसे अपनी उड़ान पर
उसको ख़बर थी कि मेरे पर भी आयेंगे

मशहूर हो गया हूँ तो ज़ाहिर है दोस्तो
इलज़ाम सौ तरह के मेरे सर भी आयेंगे

थोड़ा सा अपनी चाल बदल कर चलो 'मिज़ाज'
सीधे चले तो पींठ में खंज़र भी आयेंगे

अधूरा सा ये घर लगता है


बाग़ में नागफ़नी का भी शज़र लगता है
खूबसूरत हो अगर ऐब हुनर लगता है

कितनी चीज़ों की कमी अब भी नज़र आती है
जब भी देखूं तो अधूरा सा ये घर लगता है

अब घरों में ही दुकानों की सजावट हैं यहाँ
अब किसे फ़िक्र कि बाज़ार किधर लगता है

मुद्दतों पहले कोई हादसा गुज़रा था यहाँ
आज तक उसका फिजाओं में असर लगता है

कोई हलके से भी छू ले तो ये रिसता है 'मिज़ाज'
भर पायेगा कभी ज़ख्मे जिगर लगता है

मैं हिन्दुस्तान का मजदूर हूँ

बस इतनी बात पर मग़रूर हूँ
कि शायद मैं तुझे मंज़ूर हूँ

ज़माने के लिए मरहम हूँ मैं
ख़ुद अपने वास्ते नासूर हूँ

पसीने भर कमाई भी कहाँ
मैं हिन्दुस्तान का मजदूर हूँ

निभाना सबके बस का भी नहीं
मुहब्बत का मैं वो दस्तूर हूँ

मेरी बर्दाश्त की हद हो चुकी
मैं कुछ करने पे अब मजबूर हूँ

अखबार की तरह


हर चीज़ तौलते हैं वो बाज़ार की तरह
उनकी दुआ सलाम है व्यापार की तरह

मुद्दे की बात पहले जहाँ थी वहीं रही
आए भी वो गये भी वो अखबार की तरह

ख़ुशियाँ हमें तो सिर्फ ख़्याली पुलाव हैं
मुफ़लिस के घर में ईद के त्योहार की तरह
यूँ सरसरी निगाह से देखा कीजिये 
पढ़िए मुझको मांग के अखबार की तरह

चट्टान बन के सामने आए थे जो कभी
गिरने लगे वो रेत की दीवार की तरह

अपना गुरूर छोड़ के मिलते हैं जब 'मिज़ाज'
उनका वजूद लगता है गुलज़ार की तरह