Sunday, August 21, 2011

पत्थर भी आयेंगे


रिश्ते जताने लोग मेरे घर भी आयेंगे
फल आये हैं तो पेड़ पे पत्थर भी आयेंगे

जब चल पड़े हो सफ़र को तो फिर हौसला रखो
सहरा कहीं, कहीं पे समंदर भी आयेंगे

कितना गुरुर था उसे अपनी उड़ान पर
उसको ख़बर थी कि मेरे पर भी आयेंगे

मशहूर हो गया हूँ तो ज़ाहिर है दोस्तो
इलज़ाम सौ तरह के मेरे सर भी आयेंगे

थोड़ा सा अपनी चाल बदल कर चलो 'मिज़ाज'
सीधे चले तो पींठ में खंज़र भी आयेंगे

3 comments:

  1. bahut hi umda rachna hai ye,aap ko bahut bahut bdhaai....

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  2. khoobsoorat ghazal Ashok ji;achchhe mazmoon baandhe hain;
    albatta,doosre sher ke pehle misre mein se "ho" nikaal dijiye

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