Sunday, August 21, 2011

नफ़रतों पे वार करना है


ज़िन्दगी वीरान है गुलज़ार करना है
उम्र भर इक बेवफ़ा से प्यार करना है

काग़ज़ों के भी कलेजे फट गए आख़िर
अब कलम में और कितनी धार करना है

ये ग़ज़ल इक लम्बी दूरी की मिसाइल है
इसका मकसद  नफ़रतों पे वार करना है

एक दुल्हन जिस तरह सजती सँवरती है
हर ग़ज़ल का इस तरह श्रृंगार करना है

इस नगर के आदमी भी पत्थरों से हैं
और हमें ज़ज्बात का इज़हार करना है

No comments:

Post a Comment