नया इन्क़िलाब माँगा है
किसी सवाल का तुमसे जवाब माँगा है?
कभी वफाओं का हमने हिसाब माँगा है?
मैं अपने चाँद के नखरे उठा के हार गया
ख़ुदा से मैंने अब इक आफ़ताब माँगा है
गरज रहे थे जो बादल वो हो गए ख़ामोश
सुलगती रेत के दरिया ने आब माँगा है
हम अपने जकड़े हुए ज़ह्नों को करें आज़ाद
वतन ने आज नया इंक़िलाब माँगा है
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