बस इतनी बात पर मग़रूर हूँ
कि शायद मैं तुझे मंज़ूर हूँ
ज़माने के लिए मरहम हूँ मैं
ख़ुद अपने वास्ते नासूर हूँ
पसीने भर कमाई भी कहाँ
मैं हिन्दुस्तान का मजदूर हूँ
निभाना सबके बस का भी नहीं
मुहब्बत का मैं वो दस्तूर हूँ
मेरी बर्दाश्त की हद हो चुकी
मैं कुछ करने पे अब मजबूर हूँ
कि शायद मैं तुझे मंज़ूर हूँ
ज़माने के लिए मरहम हूँ मैं
ख़ुद अपने वास्ते नासूर हूँ
पसीने भर कमाई भी कहाँ
मैं हिन्दुस्तान का मजदूर हूँ
निभाना सबके बस का भी नहीं
मुहब्बत का मैं वो दस्तूर हूँ
मेरी बर्दाश्त की हद हो चुकी
मैं कुछ करने पे अब मजबूर हूँ
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