Tuesday, September 13, 2011

hindi diwas ki shubhkaamnayen

न मैं हिंदी का न उर्दू का हवाला लिक्खूं,,,
माँ तो बस माँ है बताओ मैं उसे क्या लिक्खूं???
- अशोक मिज़ाज
हिंदी की अपनी शान है उर्दू की अपनी शान
दोनों ही आन बान हैं हिन्दोस्तान की...
- अशोक मिज़ाज

2 comments:

  1. अशोक जी , मै आपकी काविलियत का बहुत बड़ा मुरीद हूँ , मेरे पास आपका ग़ज़ल संग्रह है जो की वीरेंदर सिंह ( पिस्तोल बीडी बाले , चंदेरी से लिया था . आपके साथ मैने एक कार्यक्रम भी किया है , १९९८ मै सागर में. बशीर बद्र जी के साथ , तब मै सागर विश्बविध्यालय मै पढाता था . आप की नज्मे मेरे दिल मै बसी हैं . और एक तो कमाल की है जो कई सालों से कई बार कहता आया हूँ .
    मै समन्दरों का मिजाज हूँ अभी उस नदी को पता नहीं
    सभी आके मुझसे लिपट गई मै किसी से जाके मिला नहीं .
    मेरी रचनाएं देखें मेरे ब्लॉग मै , जो की प्रगतिवादी बिचार धारा से जुडी है , अजब संजोग की आप आज मिल ही गए , धन्यवाद ब्लॉग बनाने के लिए .

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  2. बेटियां
    हमको एक अहसास देती है
    जीवन में विश्बास देती हैं
    बेटे तो देते आये बनबास
    बेटियां तो
    ओंठो पर हास देती है ,
    बेटियां
    अनुपम देन है
    परमात्मा की.
    इन्हें आगे ले जाना है
    समाज में ममत्व ,
    करुणा , दया बढ़ाना है
    बेटियां आज का सच है
    कल का यकीन है
    बेटियों से ही
    उर्बर होती जमीन है
    ---------------------अनुराग चंदेरी

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