Saturday, October 2, 2010

ग़ज़ल

मेरी दीवानगी, मेरी ये वहशत कम न हो जाए
तुझे छूने, तुझे पाने की चाहत कम न हो जाए

झपक जाएँ न पलकें आपका दीदार करने में
मिली है जो नसीबों से वो मुहलत कम न हो जाए

मैं तुझ से प्यार का इज़हार करने में झिझकता हूँ
बनी है जो तेरे दिल में वो इज्ज़त कम न हो जाए

'मिज़ाज' अपने अजीजों से भी मिलना दूरियां रखकर
ज़ियादा मिलने जुलने से मुहब्बत कम न हो जाए

3 comments:

  1. 'मिज़ाज' अपने अजीजों से भी मिलना दूरियां रखकर
    ज़ियादा मिलने जुलने से मुहब्बत कम न हो जाए


    वाह मिज़ाज जी, इस नाचीज़ की दाद कबूल करें!

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  2. बहुत उम्दा अशोक जी.

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