नज़र से दूर है लेकिन फ़िज़ा में शामिल है
उसी के प्यार की ख़ुशबू हवा में शामिल है
मैं चाह कर भी तेरे पास आ नहीं सकता
कि दूर रहना भी मेरी वफ़ा में शामिल है
ख़ज़ाने ग़म के मेरे दिल में दफ़्न हैं यारों
ये मुस्कुराना तो मेरी अदा में शामिल है
ख़ुदा करे के ये उसको कभी पता न चले
कि बेबसी भी हमारी रज़ा में शामिल है
तेरे सुलूक ने जीना सिखा दिया लेकिन
तेरे बग़ैर ये जीना सज़ा में शामिल है
ख़ुदा करे के ये उसको कभी पता न चले
ReplyDeleteकि बेबसी भी हमारी रज़ा में शामिल है
तेरे सुलूक ने जीना सिखा दिया लेकिन
तेरे बग़ैर ये जीना सज़ा में शामिल है
वाह वाह! अशोक जी,
क्या खूबसूरत शेर कहें हैं...........
मिजाज़ साहब, बहुत ही उम्दा गज़ल है. सभी अशआर एक से बढ़ का एक हैं..
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