Tuesday, February 1, 2011

हवा में शामिल है

नज़र से दूर है लेकिन फ़िज़ा में शामिल है
उसी के प्यार की ख़ुशबू हवा में शामिल है

मैं चाह कर भी तेरे पास नहीं सकता
कि दूर रहना भी मेरी वफ़ा में शामिल है

ख़ज़ाने ग़म के मेरे दिल में दफ़्न हैं यारों
ये मुस्कुराना तो मेरी अदा में शामिल है

ख़ुदा करे के ये उसको कभी पता चले
कि बेबसी भी हमारी रज़ा में शामिल है

तेरे सुलूक ने जीना सिखा दिया लेकिन
तेरे बग़ैर ये जीना सज़ा में शामिल है

2 comments:

  1. ख़ुदा करे के ये उसको कभी पता न चले
    कि बेबसी भी हमारी रज़ा में शामिल है

    तेरे सुलूक ने जीना सिखा दिया लेकिन
    तेरे बग़ैर ये जीना सज़ा में शामिल है

    वाह वाह! अशोक जी,
    क्या खूबसूरत शेर कहें हैं...........

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  2. मिजाज़ साहब, बहुत ही उम्दा गज़ल है. सभी अशआर एक से बढ़ का एक हैं..

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