हमें इंसाफ़ चाहिये (a ghazal on Bhopal Gas tragedy)
जिसने सुना वो सुन के यकायक सिहर गया
इक रात में ही शहर ये लाशों से भर गया
पत्ते बिखर रहे हैं अभी तक जगह-जगह
उस सरफ़िरी हवा का जहाँ तक असर गया
कुछ लोग कह रहे हैं कि मुंसिफ का था कुसूर
मुजरिम हिला के हाथ सरे आम घर गया
इस हादसे का अस्ल गुनहगार कौन है
ये बात सोचने में ज़माना गुजर गया
मुजरिम कहीं भी हो हमें इंसाफ़ चाहिए
इक बार फिर ये आसमाँ नारों से भर गया
जिसने सुना वो सुन के यकायक सिहर गया
इक रात में ही शहर ये लाशों से भर गया
पत्ते बिखर रहे हैं अभी तक जगह-जगह
उस सरफ़िरी हवा का जहाँ तक असर गया
कुछ लोग कह रहे हैं कि मुंसिफ का था कुसूर
मुजरिम हिला के हाथ सरे आम घर गया
इस हादसे का अस्ल गुनहगार कौन है
ये बात सोचने में ज़माना गुजर गया
मुजरिम कहीं भी हो हमें इंसाफ़ चाहिए
इक बार फिर ये आसमाँ नारों से भर गया
Aapka-
Ashok Mizaj