Saturday, June 19, 2010

स्व. चंद्रभान बरहमन को समर्पित ग़ज़ल

मेरे वनवास में सब ठीक है बस एक अड़चन है
न कश्ती है, न केवट है, न सीता है, न लछमन है

उदासी छाई रहती है तो पतझड़ जैसा लगता है
बरस जाती हैं जब आँखें तो लगता है कि सावन है

ज़माने से शिकायत कुछ नहीं है सिर्फ़ इतना है
अभी कुछ रोज़ से मेरी ख़ुद अपने दिल से अनबन है

हमारी शायरी भी नौकरी के साथ चलती है
कभी खटपट नहीं करती, ये कितनी अच्छी सौतन है

न जाने आज क्या एलान कर डाला है साकी ने
जानबे शैख़ हैरत में हैं, सकते में बिरहमन है

न हिन्दी है, न उर्दू है, न अरबी फ़ारसी लाज़िम
जो दिल की बात पहुँचाए, दिलों तक शायरी फ़न है

'मिज़ाज' अच्छी ग़ज़ल को देखकर महसूस होता है
जलाई थी जो खुसरो ने वो शम्मा अब भी रोशन है
स्व. चंद्रभान बरहमन को समर्पित ग़ज़ल


( यहाँ शम्मा हिंदी बोल चाल में प्रचलित उच्चारण से लिया गया है )
Aapka-
              Ashok Mizaj 

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