Saturday, May 7, 2011

रफ़्तार ही पहचान है

फूल गिर जायेंगे सब पत्ते जुदा हो जायेंगे  
जब खिज़ायें आएँगी तो पेड़ क्या हो जायेंगे  

इस मशीनी दौर में रफ़्तार ही पहचान है  
धीरे धीरे जो चलेंगे गुमशुदा हो जायेंगे  

चंद बादल क्या हुए इतना अँधेरा हो गया 
इस कदर बढ़ते धुएं में शहर क्या हो जायेंगे 

अब किसी मरहम का होता ही नहीं इन पर असर 
एक दिन ये ज़ख्म सारे ला दावा हो जायेंगे 

कुछ हकीक़त और भी परदे के पीछे है 'मिज़ाज'
मैं बता दूंगा तो सब के सब खफा हो जायेंगे

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