Saturday, May 7, 2011

ghazal

मई गुज़ार के जल्दी से जून आ जाये  
हवाएं चलने लगें मानसून आ जाये
तुम्हारी सोच हमेशा उदास रहती है  
बताओ कैसे रगों में जूनून आ जाये 

मैं शेर कह के रिसालों में भेज देता हूँ
किसी के काम तो आखिर ये खून आ जाये  

इसी उम्मीद में साहिल पे आ के बैठे हैं 
हमारे हाँथ भी इक - आध नून आ जाये
अगर सुकून को पहचान लो ' अशोक मिज़ाज '
कसम खुदा की उसी दम सुकून आ जाये 

- अशोक मिज़ाज

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