Sunday, August 21, 2011
पत्थर भी आयेंगे
रिश्ते जताने लोग मेरे घर भी आयेंगे
फल आये हैं तो पेड़ पे पत्थर भी आयेंगे
जब चल पड़े हो सफ़र को तो फिर हौसला रखो
सहरा कहीं, कहीं पे समंदर भी आयेंगे
कितना गुरुर था उसे अपनी उड़ान पर
फल आये हैं तो पेड़ पे पत्थर भी आयेंगे
जब चल पड़े हो सफ़र को तो फिर हौसला रखो
सहरा कहीं, कहीं पे समंदर भी आयेंगे
कितना गुरुर था उसे अपनी उड़ान पर
उसको ख़बर न थी कि मेरे पर भी आयेंगे
मशहूर हो गया हूँ तो ज़ाहिर है दोस्तो
इलज़ाम सौ तरह के मेरे सर भी आयेंगे
थोड़ा सा अपनी चाल बदल कर चलो 'मिज़ाज'
सीधे चले तो पींठ में खंज़र भी आयेंगे
अधूरा सा ये घर लगता है
बाग़ में नागफ़नी का भी शज़र लगता है
खूबसूरत हो अगर ऐब हुनर लगता है
कितनी चीज़ों की कमी अब भी नज़र आती है
जब भी देखूं तो अधूरा सा ये घर लगता है
अब घरों में ही दुकानों की सजावट हैं यहाँ
अब किसे फ़िक्र कि बाज़ार किधर लगता है
मुद्दतों पहले कोई हादसा गुज़रा था यहाँ
आज तक उसका फिजाओं में असर लगता है
कोई हलके से भी छू ले तो ये रिसता है 'मिज़ाज'
भर न पायेगा कभी ज़ख्मे जिगर लगता है
खूबसूरत हो अगर ऐब हुनर लगता है
कितनी चीज़ों की कमी अब भी नज़र आती है
जब भी देखूं तो अधूरा सा ये घर लगता है
अब घरों में ही दुकानों की सजावट हैं यहाँ
अब किसे फ़िक्र कि बाज़ार किधर लगता है
मुद्दतों पहले कोई हादसा गुज़रा था यहाँ
आज तक उसका फिजाओं में असर लगता है
कोई हलके से भी छू ले तो ये रिसता है 'मिज़ाज'
भर न पायेगा कभी ज़ख्मे जिगर लगता है
मैं हिन्दुस्तान का मजदूर हूँ
बस इतनी बात पर मग़रूर हूँ
कि शायद मैं तुझे मंज़ूर हूँ
ज़माने के लिए मरहम हूँ मैं
ख़ुद अपने वास्ते नासूर हूँ
पसीने भर कमाई भी कहाँ
मैं हिन्दुस्तान का मजदूर हूँ
निभाना सबके बस का भी नहीं
मुहब्बत का मैं वो दस्तूर हूँ
मेरी बर्दाश्त की हद हो चुकी
मैं कुछ करने पे अब मजबूर हूँ
कि शायद मैं तुझे मंज़ूर हूँ
ज़माने के लिए मरहम हूँ मैं
ख़ुद अपने वास्ते नासूर हूँ
पसीने भर कमाई भी कहाँ
मैं हिन्दुस्तान का मजदूर हूँ
निभाना सबके बस का भी नहीं
मुहब्बत का मैं वो दस्तूर हूँ
मेरी बर्दाश्त की हद हो चुकी
मैं कुछ करने पे अब मजबूर हूँ
अखबार की तरह
हर चीज़ तौलते हैं वो बाज़ार की तरह
उनकी दुआ सलाम है व्यापार की तरह
मुद्दे की बात पहले जहाँ थी वहीं रही
आए भी वो गये भी वो अखबार की तरह
ख़ुशियाँ हमें तो सिर्फ ख़्याली पुलाव हैं
मुफ़लिस के घर में ईद के त्योहार की तरह
उनकी दुआ सलाम है व्यापार की तरह
मुद्दे की बात पहले जहाँ थी वहीं रही
आए भी वो गये भी वो अखबार की तरह
ख़ुशियाँ हमें तो सिर्फ ख़्याली पुलाव हैं
मुफ़लिस के घर में ईद के त्योहार की तरह
यूँ सरसरी निगाह से देखा न कीजिये
पढ़िए न मुझको मांग के अखबार की तरह
चट्टान बन के सामने आए थे जो कभी
गिरने लगे वो रेत की दीवार की तरह
गिरने लगे वो रेत की दीवार की तरह
अपना गुरूर छोड़ के मिलते हैं जब 'मिज़ाज'
उनका वजूद लगता है गुलज़ार की तरह
उनका वजूद लगता है गुलज़ार की तरह
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